संतोष हेगड़े ने इस बार अनशन से पहले ही 'असहयोग' आन्दोलन शुरू कर दिया था। वही अनशन के खत्म होने के करीब चार दिन पहले से ही अग्निवेश ने अपना सुर बदलते हुए अन्ना को भला बुरा कहा था और अन्ना से पल्ला झाड लिया था। अग्निवेश और कपिल सिब्बल की पोल खोलता वीडियो यहाँ देखे.
अन्ना को संघ ने शुरू से ही अपना समर्थन दे दिया था। लेकिन अन्ना टीम लगातार बयान देकर खुद को 'अछूत' संघ से बेवास्ता बताते नही थक रही थी। इसी तरह बाबा रामदेव को भी टीम अन्ना अपमानजनक तरीके से दूर रखी थी, फिर भी बाबा ने अन्ना को साथ दिया। वही दारुल उलूम ने पाँच दिन बाद समर्थन दिया। बुखारी ने आंदोलन के खिलाफ फतवा ही निकाल दिया था और उसे मनाने के लिए अरविंद केजरीवाल रातो-रात बुखारी के हरम मे पहुँच गए थे। बार-बार खुद को सामाजिक एक्टिविस्ट साबित करने वाले (खासकर भाजपा और संघ के खिलाफ) शबाना आजमी, जावेद अख्तर, और तीस्ता जावेद इस बार सिरे से गायब थे। तो आमिर खान को 12 दिन बाद अन्ना याद आए। महान सेकुलर जेहादी हर्ष मंदार और अरुणा राय ने तो अन्ना के खिलाफ खुलकर मोर्चा खोल दिया था।
इस सेकुलरो के जयचंदी बर्ताव और संघ के पूरे सहयोग के बावजूद अन्नादोलन का श्रेय और लाभ सेकुलर जमात के हाथ मे चला जाये तो कोई अचरज नही। इस देश मे यही होता रहा है। तमाम बलिदानो के बावजूद हिंदुओं के मात और गद्दारो को 'माल' मिलता रहा है। और एन वक्त पर देश और समाज के लिए पिछवाड़ा दिखाकर गद्दारी करने वाले जेहादी और सेकूलर जमाती श्रेय और सत्ता का सुख भोगते हैं। नेहरू-पटेल-सावरकर के युग मे भी यही हुआ था और आज भी।
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