आजकल अमरसिंह की हरकतों को देखकर आपको लगेगा कि, उन्हें अचानक भान हुआ कि वह क्षत्रीय है !!
आखिर सेकुलर अमरसिंह को अचानक क्षत्रीय समाज क्यों याद आ गया??
कितनी अजीब बात है कि जिस शख्स की करतूते हिंदूद्रोही और क्षत्रीयद्रोही मानसिंह और जयचंद जैसी रही है, वही शख्स अब प्रात: स्मरणीय महाराणा प्रताप की प्रतिमाओं का अनावरण करने का ढोंग कर रहा है. जी हां, भारतीय राजनीति का कोढ़ बन चुके अमरसिंह की बात कर रहा हूँ. मुल्ला मुलायम से तलाकशुदा अमरसिंह अब क्षत्रीय समाज के नाम पर राजनीति की गोटिया फिट करने के जुगाड़ में हैं और हिन्दू समाज के अभिन्न अंग क्षत्रीय समाज को शेष हिन्दुओं के खिलाफ खडा करके जात-पांत में बांटकर राजनीतिक फायदा उठाने के फिराक में हैं.
मजे की बात है कि इसी अमरसिंह ने स्वर्गीय भैरोसिंह को राष्ट्रपति चुनाव में साथ देने का वचन देकर अपनी पीठ दिखाई थी. यही नहीं, अमरसिंह ने कई बार मुस्लिमो के लिए अपनी आवाज उठाई, लेकिन अपने राजनीतिक उत्कर्ष युग में कभी भी क्षत्रीय समाज के हको की बात तो दूर, उनका जिक्र तक नहीं किया. क्योंकि तब उनका सेकुलरिज्म लांछित होने का भय था...!! अब चूंकि उनका सूरज अवसान कर चुका है, उन्हें क्षत्रीय समाज और उनके योद्धा राणा प्रताप याद आ रहे है. राष्ट्र और राष्ट्रवाद की रक्षा ही क्षात्र धर्म है, लेकिन अमरसिंह की करतूते ठीक इसके विपरीत रही हैं.
यही अमरसिंह जो सेकुलरिज्म का दम भरते हुए हिन्दू समाज (जिसका एक प्रमुख अंग क्षत्रीय है) को कई बार कोस चुके हैं. आज फिर उसी हिन्दू समाज की शरण में आकर क्षत्रीय समाज का दामन पकड़कर अपनी राजनीतिक नैया पार कराने की जुगत कर रहे हैं.
ध्यान रहे वह फिर अपने नीजि फायदे के लिए क्षत्रीय जाती का इस्तेमाल न कर पाए. हिन्दू समाज में विघटन करके चोट न पहुंचाए. २१वी सदी का यह जयचंद अपने मंसूबो में कामयाब न हो पाए. क्योंकि पहली ही सेकुलरवाद की आड़ में लालू-पासवान-मायावती-मुलायम और उनको जनने वाली काली कोख कोंग्रेस जातिवाद के विष बोकर हिन्दू समाज का काफी अहित कर चुके है. अमरसिंह जैसे लोगो का मकसद जाती का इस्तेमाल करके ब्लेकमेल की राजनीति करने के सिवा कुछ नहीं है.
1 टिप्पणी:
अमरसिंह क्षत्रिय नहीं भडुवा है भंडुआ
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