मुम्बई पर जेहादी हमले पर सलमान खान की टिप्पणी को लेकर सेकुलर मीडिया खूब हल्ला मचा रहा है.
आखिर सलमान के पीछे सेकुलर मीडिया क्यों हाथ धोकर पडा है? क्या इसकी वजह सलमान का मुसलमान होना है? जी बिलकुल नहीं, इसकी असली वजह है सलमान का मुसलमान होकर भी, जेहादी मुसलमान नहीं होना है.
एक हिन्दू माँ और शिया मुस्लिम पिता के बेटे सलमान खान दूसरे खानों (आमिर/शाहरुख) से ज्यादा सेकुलर और ईमानदार है. लेकिन उनके मन में कपटी जेहादी मानसिकता नहीं है (जो बाकी खान सितारों में कूट-कूट कर भरी हुई है). और यही बात भारत के मुस्लिमो, उनके चरण-आराधक सेकुलर नेताओं और मीडिया को नहीं सुहाती है.
सलमान के घर गणपति लाये जाते है...उनकी एक बहन अर्पिता खान गोद ली हुई है फिर भी हिन्दू है. उनके पिता सलीम खान ने कई बार कट्टर मुस्लिमो को आड़े हाथ लिया है. कुछ साल पहले मुम्बई के इसकों मंदिर ने माहिम दरगाह के बाहर बैठने वाले गरीब मुस्लिमो को हर रोज भोजन देने का प्रस्ताव दिया था. लेकिन मुस्लिम कट्टरपंथियों ने इस प्रस्ताव का विरोध किया था. कि हिन्दू भगवान के मंदिर से आने वाले भोजन को खाने से बेहतर है भूखा मर जाना. इस मुस्लिम मानसिकता का सलीम खान ने पूरजोर विरोध किया था. वह अपने पूर्ववर्ती जोडीदार जावेद अख्तर की तरह सेकुलरिज्म का छली नकाब ओढ़कर, इस्लाम की गलतिया छिपाकर हिन्दुओ को नहीं कोसते है, बल्कि मुस्लिम कट्टरपंथ की आलोचना करते हैं.
और हमारा सेकुलर गिरोह (मीडिया, नेता, मानवाधिकार) जिस इस्लाम को सिजदा करता है वह कट्टर सुन्नी वहाबी तबका है. जाहिर है इसीलिये मीडिया को शिया सलमान खान से खुन्नस होनी ही है.
दूसरी तरफ गुजरात में मुस्लिम दंगाईयो की पैरवी करने वाले और नरेन्द्र मोदी को गाली देने वाले आमिर खान और पाकिस्तानी खिलाडियों की पैरवी करने वाले और खुद को इस्लाम का दूत बताने वाले, हिन्दू पार्टी शिव सेना की आलोचना करनेवाले शाहरुख खान कट्टर मुस्लिम हैं और सिर्फ अपने धर्म के लोगो की पैरवी करते है. इसलिए वह सेकुलर है. कोंग्रेस और मीडिया के दुलारे हैं.
यही गलती है सलमान की. .. की वह मुसलमान होकर भी कट्टर और अंधभक्त नहीं है, ईमानदारी से बात रखते है. दूसरे खानों की तरह कपट नहीं रखते है. सेकुलर दोगलापन नहीं है. उनकी मानसिकता भी जेहादी नहीं है.
और हमारे मीडिया को तो जेहादी, भारत-विरोधी, हिन्दू विरोधी मुसलमान ही प्यारे है. इसका सबूत आपको फिरोज खान के पाकिस्तान प्रवास वाले प्रकरण से भी मिल जाएगा.
पाकिस्तान में एक कार्यक्रम के दौरान किसी पाकिस्तानी ने भारत के खिलाफ अनाप-शनाप बका था. उस समय वहा फिरोज खान सहित हमारे महान सेकुलर महेश भट्ट और जावेद अख्तर भी थे. लेकिन किसी ने विरोध नहीं किया. सिर्फ फिरोज खान ने उस पाकिस्तानी को खरी-खरी सुना दी कि 'हमारे भारतीय मुसलमानों की चिंता छोड़ो और पाकिस्तानी मुसलमानों की परवाह करो'.
इसके बाद पाकिस्तानी तो छोड़ो, भारतीय मीडिया ने भी फिरोज खान को विलेन बना दिया. और शराबी, नशेड़ी जैसे खिताब दे डाले.
अब आप सोच सकते है कि भारत में सेकुलर पत्रकारिता और नेतागिरी के क्या मायने है.
5 टिप्पणियां:
भारत में सेकुलर पत्रकारिता और नेतागिरी का मतलब है हिन्दूविरोध-देशविरोध।
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सच को निडरता से लिखना सबके बस की बात नहीं। बहुत विरले ही होते हैं जो सच को लिखने की हिम्मत रखते हैं। हमारे देश में अब कांग्रेसी मानसिकता का बोलबाला है । मुसलामानों से तो कोई उम्मीद नहीं, अब तो दोहरी मानसिकता वाले , धर्मनिरपेक्षता की झूठी नकाब ओढ़े हिन्दू भी देश को बेच कर खा रहे हैं।
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बिलकूल सही विश्लेषण किया हे भाई साहब आप ने ,जब तक सेकुलरता में मुस्लिम कट्टर पा नथी और वामपंथी तड़का नहीं लगता हे तो वो अधूरी रहती हे
जीत भार्गव जी
अच्छा लिखते हैं आप ! बधाई !
सलमान खान दूसरे खानों (आमिर/शाहरुख) से ज्यादा सेकुलर और ईमानदार है।
उनके मन में कपटी जेहादी मानसिकता नहीं है (जो बाकी खान सितारों में कूट-कूट कर भरी हुई है)।
और यही बात भारत के मुस्लिमो, उनके चरण-आराधक सेकुलर नेताओं और मीडिया को नहीं सुहाती है।
सही कहा आपने …
बहुत ख़ूब !
शुभकामनाओं सहित
राजेन्द्र स्वर्णकार
आपने ठीक लिखा है अन्य खानों से सलमान ठीक हो सकता है, लेकिन यह बात ध्यान रखने की है कि सेकुलर का अर्थ केवल देश द्रोह के अतिरिक्त और कुछ नहीं.मुसलमान केवल मुसलमान होता है इसके अतिरिक्त कुछ नहीं .
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