इस देश में हम देख ही चुके हैं कि राजनीति से लेकर मीडिया और अफसरशाही का सेकुलर 'बाप्तिस्ता' (या कहिये सुन्नत) करके उसे सुनियोजित तरीके से हिन्दू-विरोधी बना दिया गया है. अब इस तथाकथित 'सेकुलरिज्म' का ताजा शिकार है न्यायपालिका.
हाल ही में ईसाई मिशनरी ग्राहम स्टेंस के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने ईसाई मिशनरियो के जबरन और लालच के बल पर धर्मांतरण पर अपनी टिप्पणी दी थी. जिससे भारत में चर्च की 'मानव-सेवा' का सच नंगा हो गया. लेकिन दूसरे ही दिन चर्च सहित बिकाऊ मानवाधिकारवादियो और मीडिया ने ऐसा बवाल मचाया कि, भारत की सबसे बड़ी कोर्ट को अपनी ही टिप्पणी हटानी पडी.
विगत कई वर्षो से न्यायपालिका को सेकुलर अपने पक्ष में दूषित करने में जुटे हुए हैं. इसके लिए सेकुलर नेतागिरी के साथ ही मीडिया, मानवाधिकार और महेश भट्ट नुमा सेलिब्रिटी का इस्तेमाल किया जाता रहा है. लोकतंत्र के तीन खम्भे संसद, मीडिया और हर्ष मंदर जैसे अफसर तो पहले ही इस सेकुलर सोच के शिकार हो चुके हैं. और जेहादियों व चर्च-चीन की गोद में बैठकर हिन्दू-विरोध की रोटियाँ सेंक रहे हैं.
अयोध्या मामले से लेकर दारा सिंह और कर्नाटक के मामलों में न्यायपालिका को प्रभावित करने का प्रयास हमने खुले आम देखा है. पहले शाहबानो में भी ऐसा ही दबाव बनाया गया था. अब नेहरू द्वारा प्रणीत और चर्च-जेहादियों द्वारा परिभाषित सेकुलरिज्म के प्रभाव में न्यायालय भी अपने फैसले बदलने लगे हैं, तो हिन्दुओं को इन्साफ कहीं भी नहीं मिलेगा... सिर्फ हिंद महासागर में डूबकी ही लगानी पड़ेगी (क्योंकि एकमात्र हिन्दू राष्ट्र नेपाल भी कम्युनिस्ट चीन की रखैल माओवादियों की बलि चढ़ा गया है).
विनायक सेन के मामले में भी यही हाल है. उनकी देशद्रोही गतिविधियों के कारण सजा मिली है. लेकिन उस सजा को मानने के लिए ना नक्सलवादी तैयार है ना कम्युनिस्ट/मानवाधिकारवादी/कोंग्रेसी/ जैसे सेकुलर!! छत्तीसगढ़ से लेकर अमेरिका तक विनायक सेन को 'न्याय' दिलाने के लिए धरने-प्रदर्शन जारी हैं!! यहाँ एक और मजेदार बात है कि यूरोपीय संघ और चर्च भी विनायक सेन के सात है...!! विनायक सेन जैसे 'मानवाधिकारवादी' के चर्च के सात ताल्लुकात संदेहास्पद हैं. उड़ीसा के कंधमाल में स्वामी कृष्णानंद की निर्मम ह्त्या के लिए भी चर्च ने नक्सलवादियो का 'सहयोग' लिया था. और इसी के चलते मेडम सोनिया आये दिन नक्सलवादियो /माओवादियों को लेकर 'नरम' बयान देती रहती है. और ऐसा माहौल बनाती रहती हैं कि उनका चिदू पोपट नक्सलवादियो के खिलाफ कुछ भी सख्त कार्रवाई न करे. आखिर नक्सलवादी/माओवादी ईसाई धर्मान्तार्ण मिशनरियो के लिए जमीनी तैयारी और हिफाजत जो करते हैं. हैरत की बात ये भी है की देश के जिस हिस्से में चर्च सक्रीय है, वहां चर्च मिशनरियां भी 'मानव-सेवा' में 'समर्पित' हैं...यानी कुछ न कुछ लिंक जरूर हैं.
कुछ ऐसे ही हालात गुजरात के मामले में हैं. गोधरा के गुनेहगार खुले आम घूम रहे हैं..लेकिन गुजरात में मासूम 'जेहादियों' के समेत, दूधपीती मासूम इशरत जहां और सोराबुद्दीन के कथित हत्यारों को सजा दिलाने के लिए कोर्ट पर बनाए गए दबाव और गुजरात से बाहर न्याय दिलाने की गुहार जैसी 'सेकुलर करतूते' तो हम देख ही चुके हैं.
आपने यह भी देखा होगा कि बेस्ट बेकारी बडौदा की चश्मदीद जाहिरा शेख ने जब हिन्दुओं और भाजपा नेताओं के खिलाफ कोर्ट में बयान दिया तो वह सभी सेकुलरो के 'आँख की तारा' थी लेकिन जब उसने अपना बयान बदला तो सेकुलरो को ज़रा भी नहीं सुहाया और तुरंत उसके खिलाफ बिकाऊ तरुण तेजपाल ने 'स्टिंग ओपरेशन' किया!!
न्याय के बहाने न्यायपालिका पर दबाव बनाने का 'सेकुलर- कर्म' काफी दिनों से चल रहा है. देश में जब भी कोई फैसला हिन्दुओं के पक्ष में या चर्च/जेहादियों के खिलाफ जाता है तो 'चर्च-गल्फ पोषित' मीडिया -मानवाधिकारवादी और नेता रोना रोने लगते हैं. और अपने हक़ में 'न्याय' नहीं होने तक हर तरह से दबाव बनाने की कोशिश करते हैं. उनके अनुसार उनके हक़ में फैसला ही 'न्याय' है बाकी सब 'अन्याय' है.
न्यायालय के मामलो में 'जेहादी-क्रूसेडर' तत्वों के बढ़ते दखल और दुष्प्रभाव पर एक और लेख आप यहाँ पढ़ सकते हैं, जो सुरेश चिपलूनकर की धारदार कलम से निकला है.
पेश है कोर्ट द्वारा चर्च की करतूतों पर की गयी टिप्पणी सहित 'असली' फैसला' जो चर्च के विरोध के बाद में बदल दिया गया.
Supreme Court decries forceful religious conversions
http://www.christianaggression.org/item_display.php?id=1295634765&type=NEWS
Jan 21, 2011
CNN IBN
New Delhi: The Supreme Court, while upholding life imprisonment for Dara Singh and Mahendra Hembram, main accused in the killing of Australian missionary Graham Staines and his two sons in Orissa's Koenjhar district in January 1999, also came down heavily on Christian missionaries for indulging in forceful conversions.
The bench of justices P Sathasivam and BS Chauhan observed that there cannot be any justification for interference in someone's belief while decrying forceful conversions.
While delivering the verdict in the murder case on Friday the court observed that investigations reveal that Staines was involved in conversions and there are materials to suggest that the missionaries were indulging in forceful conversion in the area.
Dara Singh's lawyer SS Mishra said that the missionaries were indulging in forceful conversions and his client just wanted to threaten them and not kill Staines.
"There are materials which suggest that forceful conversion was there. However, so far as the material for conviction is concerned Supreme Court maintained the judgement of the High Court. There is no direct evidence, no one had seen crime done by accused. It appears that they had gone to threaten and teach them a lesson and not kill Staines," said Mishra.
Staines and his two sons, Philip (10) and Timothy (6) were burnt to death while they were sleeping inside a van outside a church at Manoharpur village in Koenjhar district of Orissa on January 22, 1999 by Dara Singh and Mahendra Hembram.
Both Singh and Hembram have been sentenced to life in the case.
हाल ही में ईसाई मिशनरी ग्राहम स्टेंस के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने ईसाई मिशनरियो के जबरन और लालच के बल पर धर्मांतरण पर अपनी टिप्पणी दी थी. जिससे भारत में चर्च की 'मानव-सेवा' का सच नंगा हो गया. लेकिन दूसरे ही दिन चर्च सहित बिकाऊ मानवाधिकारवादियो और मीडिया ने ऐसा बवाल मचाया कि, भारत की सबसे बड़ी कोर्ट को अपनी ही टिप्पणी हटानी पडी.
विगत कई वर्षो से न्यायपालिका को सेकुलर अपने पक्ष में दूषित करने में जुटे हुए हैं. इसके लिए सेकुलर नेतागिरी के साथ ही मीडिया, मानवाधिकार और महेश भट्ट नुमा सेलिब्रिटी का इस्तेमाल किया जाता रहा है. लोकतंत्र के तीन खम्भे संसद, मीडिया और हर्ष मंदर जैसे अफसर तो पहले ही इस सेकुलर सोच के शिकार हो चुके हैं. और जेहादियों व चर्च-चीन की गोद में बैठकर हिन्दू-विरोध की रोटियाँ सेंक रहे हैं.
अयोध्या मामले से लेकर दारा सिंह और कर्नाटक के मामलों में न्यायपालिका को प्रभावित करने का प्रयास हमने खुले आम देखा है. पहले शाहबानो में भी ऐसा ही दबाव बनाया गया था. अब नेहरू द्वारा प्रणीत और चर्च-जेहादियों द्वारा परिभाषित सेकुलरिज्म के प्रभाव में न्यायालय भी अपने फैसले बदलने लगे हैं, तो हिन्दुओं को इन्साफ कहीं भी नहीं मिलेगा... सिर्फ हिंद महासागर में डूबकी ही लगानी पड़ेगी (क्योंकि एकमात्र हिन्दू राष्ट्र नेपाल भी कम्युनिस्ट चीन की रखैल माओवादियों की बलि चढ़ा गया है).
विनायक सेन के मामले में भी यही हाल है. उनकी देशद्रोही गतिविधियों के कारण सजा मिली है. लेकिन उस सजा को मानने के लिए ना नक्सलवादी तैयार है ना कम्युनिस्ट/मानवाधिकारवादी/कोंग्रेसी/ जैसे सेकुलर!! छत्तीसगढ़ से लेकर अमेरिका तक विनायक सेन को 'न्याय' दिलाने के लिए धरने-प्रदर्शन जारी हैं!! यहाँ एक और मजेदार बात है कि यूरोपीय संघ और चर्च भी विनायक सेन के सात है...!! विनायक सेन जैसे 'मानवाधिकारवादी' के चर्च के सात ताल्लुकात संदेहास्पद हैं. उड़ीसा के कंधमाल में स्वामी कृष्णानंद की निर्मम ह्त्या के लिए भी चर्च ने नक्सलवादियो का 'सहयोग' लिया था. और इसी के चलते मेडम सोनिया आये दिन नक्सलवादियो /माओवादियों को लेकर 'नरम' बयान देती रहती है. और ऐसा माहौल बनाती रहती हैं कि उनका चिदू पोपट नक्सलवादियो के खिलाफ कुछ भी सख्त कार्रवाई न करे. आखिर नक्सलवादी/माओवादी ईसाई धर्मान्तार्ण मिशनरियो के लिए जमीनी तैयारी और हिफाजत जो करते हैं. हैरत की बात ये भी है की देश के जिस हिस्से में चर्च सक्रीय है, वहां चर्च मिशनरियां भी 'मानव-सेवा' में 'समर्पित' हैं...यानी कुछ न कुछ लिंक जरूर हैं.
कुछ ऐसे ही हालात गुजरात के मामले में हैं. गोधरा के गुनेहगार खुले आम घूम रहे हैं..लेकिन गुजरात में मासूम 'जेहादियों' के समेत, दूधपीती मासूम इशरत जहां और सोराबुद्दीन के कथित हत्यारों को सजा दिलाने के लिए कोर्ट पर बनाए गए दबाव और गुजरात से बाहर न्याय दिलाने की गुहार जैसी 'सेकुलर करतूते' तो हम देख ही चुके हैं.
आपने यह भी देखा होगा कि बेस्ट बेकारी बडौदा की चश्मदीद जाहिरा शेख ने जब हिन्दुओं और भाजपा नेताओं के खिलाफ कोर्ट में बयान दिया तो वह सभी सेकुलरो के 'आँख की तारा' थी लेकिन जब उसने अपना बयान बदला तो सेकुलरो को ज़रा भी नहीं सुहाया और तुरंत उसके खिलाफ बिकाऊ तरुण तेजपाल ने 'स्टिंग ओपरेशन' किया!!
न्याय के बहाने न्यायपालिका पर दबाव बनाने का 'सेकुलर- कर्म' काफी दिनों से चल रहा है. देश में जब भी कोई फैसला हिन्दुओं के पक्ष में या चर्च/जेहादियों के खिलाफ जाता है तो 'चर्च-गल्फ पोषित' मीडिया -मानवाधिकारवादी और नेता रोना रोने लगते हैं. और अपने हक़ में 'न्याय' नहीं होने तक हर तरह से दबाव बनाने की कोशिश करते हैं. उनके अनुसार उनके हक़ में फैसला ही 'न्याय' है बाकी सब 'अन्याय' है.
न्यायालय के मामलो में 'जेहादी-क्रूसेडर' तत्वों के बढ़ते दखल और दुष्प्रभाव पर एक और लेख आप यहाँ पढ़ सकते हैं, जो सुरेश चिपलूनकर की धारदार कलम से निकला है.
पेश है कोर्ट द्वारा चर्च की करतूतों पर की गयी टिप्पणी सहित 'असली' फैसला' जो चर्च के विरोध के बाद में बदल दिया गया.
Supreme Court decries forceful religious conversions
http://www.christianaggression.org/item_display.php?id=1295634765&type=NEWS
Jan 21, 2011
CNN IBN
New Delhi: The Supreme Court, while upholding life imprisonment for Dara Singh and Mahendra Hembram, main accused in the killing of Australian missionary Graham Staines and his two sons in Orissa's Koenjhar district in January 1999, also came down heavily on Christian missionaries for indulging in forceful conversions.
The bench of justices P Sathasivam and BS Chauhan observed that there cannot be any justification for interference in someone's belief while decrying forceful conversions.
While delivering the verdict in the murder case on Friday the court observed that investigations reveal that Staines was involved in conversions and there are materials to suggest that the missionaries were indulging in forceful conversion in the area.
Dara Singh's lawyer SS Mishra said that the missionaries were indulging in forceful conversions and his client just wanted to threaten them and not kill Staines.
"There are materials which suggest that forceful conversion was there. However, so far as the material for conviction is concerned Supreme Court maintained the judgement of the High Court. There is no direct evidence, no one had seen crime done by accused. It appears that they had gone to threaten and teach them a lesson and not kill Staines," said Mishra.
Staines and his two sons, Philip (10) and Timothy (6) were burnt to death while they were sleeping inside a van outside a church at Manoharpur village in Koenjhar district of Orissa on January 22, 1999 by Dara Singh and Mahendra Hembram.
Both Singh and Hembram have been sentenced to life in the case.
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