25 मार्च 2010

कविता: तुम्हारी हत्या पर भी रख लेंगे २ मिनट का मौन

तुष्टिकरण से भी एक कदम आगे बढ़कर जेहाद-समर्थक हो चुके भारत के सेकुलरवाद यानी शर्मनिरपेक्षता पर करारा व्यंग्य करती युवा कवि धर्मेन्द्र शर्मा की एक कविता प्रस्तुत है.

तुम्हारी हत्या पर भी रख लेंगे २ मिनट का मौन

(अभागे भारतीय की फरियाद पर 'सिक्युलर' नेता द्वारा दी गई सलाह की तरह पढ़ें)
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अच्छा!!! वो दुश्मन है? बम फोड़ता है? गोली मारता है?
मगर सुन - दोस्ती में - इतना तो सहना ही पड़ता है

तय है - जरुर खोलेंगे एक और खिड़की - उसकी ख़ातिर
मगर - हम नाराज़ हैं - तेरे लिए इतना तो कहना ही पड़ता है

तुम भी तो बड़े जिद्दी हो - दुश्मन भी बेचारा क्या करे
इतने बम फोड़े - शर्म करो - तुम लोग सिर्फ दो सौ ही मरे ?

चलो ठीक है - इतने कम से भी - उसका हौंसला तो बढ़ता है
और फिर - तुम भी तो आखिर १०० करोड़ हो(*) - क्या फर्क पड़ता है?
[(*) ११५ करोड़ में १५ करोड़ तो विदेशी घुसपैठिये हमने ही तो अन्दर घुसाएँ हैं वोटों के लिए]

अच्छा! समझौते की गाड़ियों में दुश्मन भी आ जाते हैं???
क्या हुआ जो दिल लग गया यहाँ - और यहीं बस जाते हैं

बेचारे - ये तो वहां का गुस्सा है - जो यहाँ पर उतारते हैं
वहां पैदा होने के पश्चाताप में - यहाँ पर तुम्हें मारते हैं (क्यों न मारें?)

क्या सोचता है तू ? मरना था जिनको - वो तो गए मर
तू तो जिन्दा है ना - तो चल - अब मरने तक हमारे लिए काम कर

और क्या औकात थी उन मरने वालों की ? सिर्फ २०० रुपये मासिक कर (*१)
हम क्या शोक करें - क्यों शोक करें अब - ऐसे वैसों की मौत पर ?

अच्छा! आतंकवादी तुम्हें लूटता है? मारता है? मजहब के नाम पर ?
पर आतंकवादी का तो कोई मजहब ही नहीं होता - कुछ तो समझा कर (बेवकूफ कहीं के)

तू सहिष्णु है - भारत सहिष्णु है - यह भूल मत - निरंतर याद कर
क्या कहा? आत्मरक्षार्थ प्रतिरोध का अधिकार? - बंद यह बकवास कर (अबे,वोट बैंक लुटवायेगा क्या)

इन बेकार की बातों में - न अपना कीमती वक्त बरबाद कर
भूल जा - कुछ नहीं हुआ - जा काम पर जा - काम कर

तेरे गुस्से की तलवार को - हमारी शांति की म्यान में रख
हमने दे दिया है ना कड़ा बयान - ध्यान में रख

जानते हैं हम - इस बयान पर - वो ना देगा कान
चिंता ना कर - तैयार है - एक इस से भी कड़ा बयान

दे रक्खा है उसे - सबसे प्यारे देश का दरजा (*२)
चुकाना तो पड़ेगा ना - इस प्यार का करजा

दुनिया भर से - कर दी है शिकायत - कि वो मारता है
दुनिया को फुरसत मिले - तब तक तू यूँ ही मर जा

किस को पड़ी है कि - कौन मरा - और मार गया कौन
आराम से मर - तेरे लिए भी रख लेंगे - २ मिनट का मौन

*1 : Profession Tax Rs.200/-per month
*2 : Most Favoured Nation
रचयिता : धर्मेश शर्मा                         संशोधन, संपादन : आनंद जी. शर्मा

5 टिप्‍पणियां:

Jandunia ने कहा…

बहुत सुंदर रचना।

Sulabh Jaiswal "सुलभ" ने कहा…

देख रहा हूँ. (छद्म) सेकुलर ड्रामा.
वैसे मैंने भी अभियान छेड़ दिया है.

आप जारी रहें. व्यापक स्तर पर जन जागरण जरुरी है.

RAJ SINH ने कहा…

अतुलनीय व्यंग विधा में भारत का वर्तमान सच .

indianrj ने कहा…

बहुत गहराई एवं सच्चाई से लिखी गयी पंक्तियां. धन्यवाद इतनी साहसिक सोच के लिए.

indianrj ने कहा…

बहुत गहराई एवं सच्चाई से लिखी गयी पंक्तियां. धन्यवाद इतनी साहसिक सोच के लिए.