23 मार्च 2010

ये बाबा ! ना बाबा, ना !

मुम्बई की लोकल ट्रेन से लेकर स्थानीय अखबारों में आपको कई बाबाओं के विज्ञापन मिल जायेंगे. जैसे कि बाबा बंगाली, बाबा पाशा, बाबा जमाल, आदि आदि. ये सभी बाबा २४ घंटे में १००% शर्तियाँ इलाज करने का दावा करते हैं. विवाह-संबंधो में मनमुटाव, परीक्षा में असफलता, नौकरी में नाकामी, धंधे में परेशानी जैसी लगभग दुनिया की हर शारीरिक-मानसिक-सामाजिक-आर्थिक मुसीबत का इलाज इनके पास है!!

गौर करने लायक बात ये है कि, इन बाबाओ में अधिकाँश मुस्लिम हैं. लेकिन अपने विज्ञापनों में पूज्य साईं बाबा का फोटो और ॐ जैसे हिन्दू प्रतीक भी लगाते हैं (शायद शर्म-निरपेक्षता की सबसे बड़ी मिसाल यही बाकी है).

मजे की बात है अब तक किसी भी प्रगतिशील/अंधश्रद्धा निर्मूलन संगठन/ शर्म-निरपेक्ष चैनल /पत्रकार ने इनकी खबर नहीं ली ना ही इसके खिलाफ किसी ने आवाज़ उठाई. कोर्ट ने भी इनके खिलाफ संज्ञान नहीं लिया.

और ना ही यह सुनने में आया कि लोकल रेलवे में अनाधिकृत रूप से और गुमराह करने वाले विज्ञापन लगाने के लिए रेलवे ने कभी कोई कार्रवाई की हो!! जबकि इनका पता और फोन नंबर भी विज्ञापनों में दिया जाता है. और भोली-भाली जनता को ठगने का यह धंधा खुले आम चलता है.

इससे भी ज्यादा मजे की बात ये है कि सेकुलरो की सरपरस्ती में मुल्ला हमेशा वन्देमातरम गाने, नसबंदी कराने, हिन्दू त्यौहार मनाने के खिलाफ बार-बार फतवा जारी करने को आतुर रहते हैं. लेकिन हिन्दू प्रतीकों का इस्तेमाल करके प्रजा को मूर्ख बनाकर गाढी कमाई करनेवाले इन बाबाओं के खिलाफ किसी भी मुल्ले ने फतवा नहीं निकाला.

बात-बेबात पर हिन्दू संतो को आरोपों के आधार पर ही बदनाम करने को बेताब रहने वाले मीडिया की इस विषय में खामोशी हैरत अंगेज है.

शायद सेकुलर मीडिया अपनी नपुंसकता का इलाज करने के लिए इन बाबाओं के पास जाता हो??

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