19 फ़रवरी 2010

'खान' में नहीं है जान !


जनमानस में इस्लाम के जेहादी स्वरूप को भुलाने के लिए  'छवि सुधारक अभियान' के तहत बनाई गयी फिल्म माय नेम इज खान अब चारो खाने चित्त होती नजर आ रही है. 'खान' भयभीत-पोषित मीडिया चाहे कुछ भी दावे कर ले लेकिन जनता ने लगभग इस फिल्म को ठुकरा दिया है और इसका हश्र सैफ अली खान अभिनीत कुर्बान जैसी होने की पूरी उम्मीद है.

शिव सेना के विरोध और मीडिया द्वारा खान-गुणगान के कारण शुरूआत में भले ही इस फिल्म ने शाहरुख के अंधभक्तो की भीड़ जुटाई हो लेकिन  अब यह खेल लंबा नहीं चल रहा है. क्योंकि लोग झांसे में आकर एक बार फिल्म देखने भले ही चले जाए, बार-बार उन्हें बेवकूफ बनाना मुश्किल है. शायद लोगो की समझ में भी आ गया होगा की माय इज इज खान पर १०-२० रुपये खर्च करके उसे पायरेटेड सीडी पर देखना ही मुनासिब है. कोंग्रेस और मेडम सोनिया के करीबी शाहरुख खान की लाज बचाने के लिए अब एक ही उपाय है कि भोंदू युवराज की युवक कोंग्रेस या एन एस यु आई टिकट खरीदकर लोगो में मुफ्त बांटे.
 
पीवीआर सिनेमा में थियेटर की सीट-भराई ९०% गिरकर सोमवार को ५०% हो गयी. वही स्पाइस सिनेमा का कहना है कि, .. खान की टिकट बिक्री में बुधवार को २०% और गुरूवार को ३०% गिरावट आई.

बिना मनोरंजक गुणों के सिर्फ प्रोपेगेंडा के लिए बनाई जाने वाली फिल्मो का हश्र ऐसा ही होता है.
 
विस्तार से पढने के लिए वन इंडिया पोर्टल पर छपी खबर पर गौर करें. लिंक दिया जा रहा है...

3 टिप्‍पणियां:

भारतीय नागरिक - Indian Citizen ने कहा…

लेकिन स्टार और आई-बी-एन वाले तो सुपर-डुपर हिट करा चुके हैं.

rahul ने कहा…

"चल गया ‘माई नेम..’ का जादू "
ठाकरे बिग्रेड को मुँह चिढ़ाते हुए इस फिल्म ने पहले दिन 25 करोड़ रुपए की कमाई की।
http://hindi.webdunia.com/news/news/national/1002/14/1100214054_1.htm

अमेरिका में 'माई नेम.' ने की रिकॉर्ड कमाई
http://khabar.josh18.com/news/28374/6

जीत भार्गव ने कहा…

@ राहुल, मेरे ख़याल से 'सेकुलर मीडिया' का मतलब तो तुम समझते ही होंगे! जब वह भोंदू युवराज को महान नेता बन सकता है तो खान के यशोगान में क्यों पीछे रहेगा? ज़रा लेख में दिए आंकड़ो पर भी गौर करे और उनके स्त्रोतों के बारे में भी. सच क्या है पता चल जाएगा. टिप्पणी के लिए धन्यवाद. आप जैसे पाठको से ही हमें लगातार लिखते रहने और सेकुलरो को बेनकाब करने की ऊर्जा मिलती है.