इस देश में अल्पसंख्यक होने के कई फायदे हैं. आप बहुसंख्यकों (हिन्दुओं) की कीमत पर सारी सरकारी सुख-सुविधाएं भोगकर, मीडिया और मानवाधिकार संगठनों की छत्र-छाया पाकर भी, जुल्म का शिकार होने का रोना रो सकते हैं. आपकी चाकरी के लिए, आपके इशारों पर नाचने लिए दिन -रात देश के नेता, मीडिया और बुद्धिजीवी हाजिर रहते हैं. फिर भी इस देश के लोकतंत्र और 'सेकुलरिज्म' पर सवाल खड़े कर सकते हैं.
आप देशहित से ज्यादा अपने मजहब को रखते हैं. आप इरान में अमरीकी हमला होने पर नागपुर में हिदुओं के घर जला सकते है. तो अफगानिस्तान पर हमला होने पर लखनऊ में अन्य वर्गों की दुकाने जला सकते हैं. फिर भी 'इस्लाम खतरे में है' का एलान करके देश में फसाद कर सकते हैं. सात समंदर पार किसी अनजाने देश में अनजाने कार्टूनिस्ट द्वारा पैगम्बर साहब के कथित अपमान के नाम पर देश की आर्थिक राजधानी मुम्बई की सड़के जाम कर सकते हैं. एक ऐसे ही फिल्मी 'सितारे' हैं इमरान हाशमी. आपको बता दे की कुछ साल पहले इस देश में एक और सेकुलर हाशमी पैदा हुए थे...सफ़दर हाशमी. जिनको कोंग्रेसी गुंडों ने मार दिया था लेकिन उनकी मौत के बाद उनकी बीवी शबनम हाशमी ने एक एनजीओ के नाम पर एक दूकान शुरू कर दी. मजेदार बात ये है कि आजकल वह उसी कोंग्रेस की छत्र-छाया में एनजीओ, सेकुलरिज्म, इनाम-इकराम की दूकान चला रही है. लेकिन उन हाशमी का इन हाशमी से कोई सम्बन्ध नहीं है. सिर्फ एक ही सम्बन्ध है कि वो भी सेकुलर थे... ये भी अपने सेकुलर अंकल महेश भट्ट की सरपरस्ती में सेकुलर बनने की तालीम ले रहे हैं. खबर ये हैं कि, हाशमी के अनुसार, मुम्बई के मशहूर पाली हिल इलाके में एक सोसायटी ने इमरान हाशमी साहब को मकान देने मना कर दिया, क्योंकि वह मुस्लिम हैं. फिर क्या था हाशमी साहब अपने सेकुलर अंकल के साथ पहुँच गए मीडिया और सरकार के पास. जो पहले से ही उनके लिए पलक-पांवडे बिछा कर बैठे थे. हकीकत ये है कि मुम्बई में कई शाकाहारी हिन्दू-जैन सोसायटियों में मांसाहारी हिन्दुओं को भी घर के लिए मना कर दिया जाता है. यहाँ तक कि यहाँ के मूल निवासी मराठियों को भी मना कर दिया जाता हैं. लेकिन आज तक सभी ने सोसायटी और शाकाहारी समुदायों की भावनाओं का ख़याल रखते हुए किसी किस्म का बवाल नहीं किया. और न ही महेश भट्ट जैसा कोई सेकुलर उनकी वकालात करने आगे आया. असली खबर यह है कि सोसायटी ने मना किया ही नहीं है. बल्कि हाशमी ने पब्लिसिटी स्टंट किया है. एक तो वह अपने अंकल की डी ग्रेड 'सेमी-न्यूड' फिल्मो के अलावा किसी और की फिल्म में आते नहीं, और अगर आते हैं तो फिल्म चलती नहीं. पता नहीं, आजकल कोई फिल्म उनके पास है या नहीं, लेकिन पब्लिसिटी तो मिल गयी!
खैर अल्पसंख्यक होने के नाते भेदभाव करने और परेशान करने का आरोप लगाना कोई नई बात नहीं है. इसके पहले शबाना आजमी ने भी मुस्लिम होने के नाते उन्हें मुम्बई में फ्लैट नहीं मिलने का रोना रोया था. जबकि सब जानते हैं कि उनके पिता के नाम पर मुम्बई के पोश इलाके में एक पार्क का नाम भी रखा हुआ है. इसके अलावा उनके पास मुम्बई और पुणे में कई सारे फ्लैट्स हैं. जब इस खुलासे के साथ शशिरंजन और अशोक पंडित जैसे कुछ फिल्मकारों ने प्रेस कोंफ्रेंस करके जनता को हकीकत बताई तो दूसरे दिन शबाना आजमी न केवल मीडिया की पहुँच से गायब हो गयी बल्कि, बोलती ही बंद हो गयी. सब जानते हैं कि शबाना आजमी और जावेद अख्तर को अन्य हिन्दू कलाकारों की कीमत पर इस देश ने ज्यादा सम्मान और प्यार दिया, सरकार ने भी उन्हें समय-समय पर सम्मानित किया लेकिन वह दोनों हिन्दू विरोध में कोइ क़सर नहीं छोड़ते. अपने पाप ढंकने के लिए मुस्लिम होने और भेदभाव होने का रोना रोने वाले और भी मामले अतीत में हो चुके हैं. कैसेट किंग गुलशन कुमार की ह्त्या के मामले में विदेश भाग गए संगीतकार नदीम ने और हाल ही में लोकसभा के जरिए कोंग्रेस के जरिए संसद में भेजे गए और मैच फिक्सिंग के आरोपों से गिरे क्रिकेटर अजहरुद्दीन ने भी अपने बचाव में मुस्लिम-अल्पसंखयक होने और भेदभाव होने का आरोप लगाया था. हैरत की बात है कि जब नदीम के गानों पर देश झूमता रहा और उसे सराहा तब उन्हें भेदभाव नहीं लगा. अजरुद्दीन के हजारों -लाखो फैन उनके खेल के दीवाने थे तब उन्हें भेदभाव नजर नहीं आया लेकिन जब कानून अपना काम करने लगा तब उन्हें अल्पसंख्यवाद और खुद का मुस्लिम होना याद आ गया.
लेकिन कई भले मुस्लिम भी हैं. दिवंगत फिरोज खान जैसे कलाकार पाकिस्तान में जाकर हिन्दुस्तान के अपमान पर पाकिस्तान को चेता कर खरी-खरी सुना दी थी. हैरत की बात है कि तब भी हमारे सेकुलर मीडिया और महेश भट्ट को पेट में मरोड़ आ गयी थी कि फिरोज ने गलत किया! मुम्बई में ही कई मुस्लिम कलाकारों के फ्लैट्स और बंगले बने हुए हैं. शाहरुख का चर्चित बंगला 'जन्नत' तो सभी जानते हैं. मजेदार बात यह है कि पाकिस्तान से आये मुस्लिम कलाकार अदनान सामी के भी मुम्बई में १२ फ्लैट्स हैं. जब मुम्बई में पाकिस्तानी मुस्लिम को भी इतने सारे फ्लैट्स मिल सकते हैं तो हिन्दुस्तानी मुस्लिम इमरान हाशमी और शबाना आजमी को फ्लैट नहीं मिलने वाली बात में कितनी सचाई है. दूसरी बात ये कि आज तक किसी भी अन्य तथाकथित अल्पसंख्यक वर्ग के व्यक्ति ने मुम्बई में घर नहीं मिलाने और भेदभाव का आरोप नहीं लगाया. चाहे वह जैन हो या बौद्ध, सिक्ख हो या पारसी, ईसाई हो या अहमदिया. जिस निबाना सोसायटी ने कथित तौर पर इमरान हाशमी को फ्लैट देने के लिए मना किया था वहीं पर राजा मुराद भी रहते हैं. उन्होंने हाशमी की बात को खारिज किया है. साथ ही मीडिया द्वारा विलेन के रूप में निरुपित सलमान खान ने भी खुलकर इस आरोप को गलत ठहराया. हालांकि शाहरुख खान ने बड़ी कुटनीती से जवाब देते हुए अपना पल्ला झाड़ लिया तो बात-बेबात पर मीडिया में छाए रहने वाले 'सेकुलर' आमिर खान ने तो हाशमी के बयान पर कोई स्पष्ट बात करना ही मुनासिब नहीं समझा. आखिर अपने व्यक्तिगत मामलों को मजहब से जोड़कर उसे साम्प्रदायिक रंग देना किस किस्म का सेकुलरिज्म है? इसका जवाब तो भारत के लोकतंत्र और सेकुलरिज्म पर बार-बार सवाल उठाने वाले महेश भट्ट, शबाना आजमी, जावेद अख्तर जैसे लोग ही दे सकते हैं. यह लोग देश में किस तरह का सेकुलरिज्म चाहते हैं? क्या यह हस्तियाँ कल्पना कर सकती हैं, कि शबाना, महेश भट्ट और हाशमी जैसे लोगों के बयानों के कारण देश के हिन्दू-मुस्लिमो के बीच सदभाव कितना बिगड़ सकता है?
खैर ऐसे सवाल पूछने की हिम्मत न तो हमारे मुख्यधारा के मीडिया के पास है ना ही सेकुलर नेताओं के पास. और इन शबानाओं, महेश भट्टों और हाशमियों के बयान ही पाकिस्तान और कट्टरपंथी मुल्लाओं के हथियार बन जाते हैं.
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