कांग्रेस ने आनंद से पल्ला झाड़ा
नई दिल्ली। कांग्रेस पार्टी ने अदालत की अवमानना के मामले में दोषी करार दिए गए बीएमडब्ल्यू मामले के अभियुक्त संजीव नंदा के वकील आर के आनंद से खुद को दूर कर लिया है। आनंद ने कांग्रेस पार्टी के टिकट पर 2004 में लोकसभा का चुनाव लड़ा था।पार्टी प्रवक्ता शकील अहमद ने कहा कि यह आनंद और न्यायालय के बीच का मामला है। हमें इस मामले के संबंध में कोई राजनीतिक बयान नहीं देना है।
बुधवार को सुप्रीम कोर्ट ने दिल्ली हाईकोर्ट के उस फैसले को बरकरार रखने का निर्णय दिया, जिसमें आनंद को अदालत की अवमानना का दोषी करार दिया गया था।
इससे पहले, हाईकोर्ट ने एक समाचार चैनल के स्टिंग ऑपरेशन के आधार पर आनंद को दोषी ठकराया था। स्टिंग में दिखाया गया था कि बीएमडब्लयू मामले के अभियुक्त संजीव नंदा के वकील आनंद इस मामले में सरकारी वकील आई. क्यू. खान के साथ मिलकर नंदा को बचाने के लिए प्रयास कर रहे थे।
विधि जगत ने भी की सराहना:----
बीएमडब्ल्यू मामले में अदालत की अवमानना करने वाले जानेमाने वकील आर के आनंद की सजा बरकरार रखे जाने के सुप्रीम कोर्ट के फैसले की विधि जगत में यह कहते हुए सराहना की गई कि यह निर्णय वकालत के पेशे के लिए अच्छा है और इससे तंत्र को साफ सुथरा बनाने में मदद मिलेगी।
जानेमाने वकील राम जेठमलानी और के.टी.एस. तुलसी ने इस फैसले का यह कहते हुए स्वागत किया कि इससे पेशे की 'गरिमा' बहाल करने में मदद मिलेगी। बीएमडब्ल्यू 'हिट एंड रन' मामले में संजीव नंदा का बचाव करने वाले जेठमलानी ने कहा, 'मैं फैसले से खुश हूं लेकिन चीजें अभी भी छिपी हुई हैं और किसी दिन उन्हें भी उजागर होना होगा। यह हमारे लिए और विधि तंत्र के लिए अच्छा है। वह [आनंद] सजा का हकदार है क्योंकि उसने अपने मुवक्किल की कीमत पर रुपया कमाने की कोशिश की।
के.टी.एस. तुलसी ने कहा कि सत्य की विजय हुई। टेप की रिकॉर्डिंग की विश्वसनीयता पर कभी कोई संदेह नहीं था। यह बेहद दुख की बात है कि अंतिम निर्णय आने में लंबा समय लगा। लेकिन मुझे खुशी है कि सुप्रीम कोर्ट ने वकालत के पेशे के महत्व को दोहराया और यह समाज एवं अदालत का कर्तव्य है। वकीलों के लिए आत्मनिरीक्षण की वकालत करते हुए उन्होंने कहा कि हम वकीलों को यह याद रखने की जरूरत है कि वकालत का पेशा कोई व्यापार या व्यवसाय नहीं बल्कि एक नोबेल पेशा है।
अधिवक्ता प्रशांत भूषण ने कहा कि आनंद पर उम्रभर के लिए प्रैक्टिस करने पर रोक लगाई जानी चाहिए क्योंकि उन्होंने जो किया, वह 'पेशागत मूलभूत दुराचरण' है। उन्होंने कहा कि यह एक अलग मामला नहीं है। कई मामलों में गवाहों को प्रभावित किया गया और बार काउंसिल उन प्रभावशाली वकीलों के खिलाफ कोई कार्रवाई करने में विफल रही। भूल करने वाले वकीलों के लिए यह मामला एक नजीर पेश करेगा। भूषण ने कहा कि बार काउंसिल की विफलता को देखते हुए वकीलों के लिए कोई आंतरिक नियामक निकाय होना चाहिए.
(Source:दैनिक जागरण) Jul 29, 05:23 pm
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