जिस तरह हमारे देश में नेताओं के सेकुलर हो जाने से उन्हें को चोरी और भ्रष्टाचार का लायसेंस मिल जाता है, ठीक वैसे ही चोरी करनेवाला साहित्यकार भी 'सेकुलर' हो तो उसका हर गुनाह माफ़ है.
तुम मेरे हिस्से की शायद धूप भी खा जाओगे ! ’
इसे कहते हैं बेशर्मी से चोरी करके खुद को बहुत बड़ा शायर साबित करना और इसके सहारे फ़िल्मी दुनिया में करोडो रुपये कमाना.कथायात्रा 1978 में एक गज़लकार दिनेशकुमार शुक्ल ने अपनी पूरी ग़ज़ल के बीच यह एक शेर लिखा था .
बड़ी दिलचस्प बात है कि यही शेर पच्चीस साल बाद जनाब जावेद अख्तर ने अपनी किताब 'तरकस' में अपना बताकर कुछ इस तरह छापा है..
‘ऊंची इमारतों से मकां मेरा घिर गया , कुछ लोग मेरे हिस्से का सूरज भी खा गये !’ |
लिहाजा अभी तक न तो किसी भी 'नामवर' आलोचक ने ना ही साहित्यिक संगठन या मीडिया ने इस मामले पर प्रकाश डाला है.
आखिर जावेद अख्तर महान सेकुलर जो ठहरे. और इस देश में सेकुलर हो जाने पर आपके सारे गुनाह माफ़ हो जाते हैं...!! ऊपर से कोंग्रेस सरकार बाकी असली साहित्यकारों को दरकिनार करते हुए उन्हें पद्मविभूषण जैसे तमगो से नवाजती है..!!