बाला
साहेब ठाकरे की बीमारी की खबर के साथ ही हमारे कुछ जागरुक उत्तर भारतीय
मसीहाओ ने बाला साहब को कोसना और अनर्गल लिखना शुरू कर दिया है। इसमे से से
अधिकाँश लोग हिन्दू समाज से हैं और जो सेकुलर नेताओं व मीडिया द्वारा
दिग्भ्रमित हैं।
बात जनवरी 2010 की है। मुम्बई के अंधेरी पूर्व में साकीनाका इलाके में एक शिवप्रकाश दुबे नामक उत्तर भारतीय के बेटे प्रवेश दुबे के अपनी कुलदेवी माता विन्ध्य वासिनी की मन्नत के लिए रखे गए बाल उसकी स्कूल के ईसाई फादर ने जबरन काट दिए।
इस इलाके में बड़े-बड़े उत्तर भारतीय नेता है - कोंग्रेसी मंत्री नसीम खान यहाँ से एमेले हैं, बगल में कुर्ला से कृपाशंकर सिंह एमेले हैं। संजय निरुपम का ये कार्य क्षेत्र है। लेकिन किसी ने दुबे जी को सपोर्ट नहीं किया नसीम खान का भाई तो फादर का रहनुमा बनाकर दुबे जी को धमकाने लगा कि हल्ला मत करो वरना स्कूल से निकाल देंगे। कोंग्रेस सरकार के दबाव में पुलिस भी स्कूल के फादर के पक्ष में खडी थी और प्राथमिकी दर्ज करने के लिए मना कर दिया।
तब बजरंग दल मुम्बई के प्रमुख श्री उमेश राणे अपने 100 समर्थको और 50 शिवसैनिक (सभी महाराष्ट्रीयन) स्कूल में गए और फादर की भद बिगाड़ी। और पुलिस में शिकायत दर्ज कराई। मजे की बात है एक उत्तर भारतीय पर जुल्म हुआ तो उसके हक़ में लड़नेवाले सभी महाराष्ट्रीयन थे।
दूसरी तरह उत्तर भारतीयों के सारे मसीहा- संजय निरुपम, कृपाशंकर, नसीम खान, अबू आजमी आदि बिल में जा घुसे थे।
यह खबर अंगरेजी अखबार मुम्बई मिरर और डीएनए में भी छपी थी। मिम्बी मिरर का लिंक यहाँ दे रहा हूँ, जिसे अपनी पुष्टि के लिए आप पढ़ सकते हैं। टीवी चैनलों पे भी उमेश राने आये थे।
ऐसे असंख्य वाकये हैं। फिर भी हम उत्तर भारतीय मराठी मानूष के साथ प्रेम से नहीं रह पाए तो गलती हमारी है। किसी राज या बालासाहेब ठाकरे की नहीं।
दरअसल हमें ये सत्य स्वीकार करना होगा कि मुम्बई के अधिकाँश अपराधो में उत्तर भारतीय मुस्लिम (खासकर वहाबी) शामिल होते हैं। लेकिन ठीकरा फूटता है सभी उत्तर भारतीयों पर। ऐसे में लालू, नीतीश, अबू, अमर सिंह, रौल विंची और मुलायम, कृपाशंकर, निरुपम के बयान आग में घी डालने का काम करते हैं।
और मुम्बई में यूपी के यादव के सामने मराठी जाधव, और पांडे के सामने देशपांडे खडा हो जाता है। जब की पता करो तो दोनों के रगों में एक ही डीएनए होगा!!
सोनिया के खिलाफ राष्ट्रवाद का नारा लगाकर राष्ट्रवादी कोंग्रेस पार्टी बनाने वाले शरद पवार का 'राष्ट्रवाद' से कितना वास्ता है?
ठीक वैसे ही वक्त के साथ मराठावाद का नारा भी हवा के साथ गुम होने वाला है। हाँ हमें मुम्बई में अपनी विश्वसनीयता कायम करनी होगी।
दूसरी तरफ हमें समझना होगा कि ---हमारे वोटो पे जितने वाले गोवा में कोंग्रेस का मुख्यमंत्री दिगंबर कामत उत्तर भारतीयों को भिखारी कहता है। महाराष्ट्र का शिक्षा मंत्री सुरेश शेट्टी हमें सिर्फ ठेला वाला, केला वाला कहता है तो कोई तकलीफ नहीं होती तो ठाकरे से क्यों इतनी खुन्नस?? क्यों हम निरुपम, अबू आजमी कृपाशंकर, लालू अमर सिंह और सेकुलर मीडिया जैसे दलालों के बहकावे में आकर मुम्बई में अपनी विश्वसनीयता गिराने पे तुले हैं।
मुम्बई दंगो में सरे आम नंगा नाच करनेवाले और दाउद इब्राहिम के करीबी अबू आजमी आये दिन मुम्बई में पोस्टर चिपकाता है कि -''मुम्बई हमारी आपकी नहीं किसी के बाप की!'' तो किस सद्भाव की अपेक्षा रखे? किसी जमाने में मुम्बई की गलियों में झोला लेकर काम मांगते फिरते उत्तर भारतीय संजय निरुपम को बाला साहब ने सामना का सम्पादक बनाकर राज्य सभा में भेजा. लेकिन बदले में निरुपम ने बाला साहेब को धोखा दिया। इस तरह हम कैसी विश्वसनीयता कायम करना चाहते हैं??
याद रखिये बाला साहब न होते तो मुम्बई की हालत भी कश्मीर, केरल, असम और मुल्लायम राज जैसी होती।
http://www.mumbaimirror.com/ article/2/ 2010010620100106015843840aee07 258/Principal-snips-off- student%E2%80%99s-hair- parents-lodge-FIR.html?pageno= 1
बात जनवरी 2010 की है। मुम्बई के अंधेरी पूर्व में साकीनाका इलाके में एक शिवप्रकाश दुबे नामक उत्तर भारतीय के बेटे प्रवेश दुबे के अपनी कुलदेवी माता विन्ध्य वासिनी की मन्नत के लिए रखे गए बाल उसकी स्कूल के ईसाई फादर ने जबरन काट दिए।
इस इलाके में बड़े-बड़े उत्तर भारतीय नेता है - कोंग्रेसी मंत्री नसीम खान यहाँ से एमेले हैं, बगल में कुर्ला से कृपाशंकर सिंह एमेले हैं। संजय निरुपम का ये कार्य क्षेत्र है। लेकिन किसी ने दुबे जी को सपोर्ट नहीं किया नसीम खान का भाई तो फादर का रहनुमा बनाकर दुबे जी को धमकाने लगा कि हल्ला मत करो वरना स्कूल से निकाल देंगे। कोंग्रेस सरकार के दबाव में पुलिस भी स्कूल के फादर के पक्ष में खडी थी और प्राथमिकी दर्ज करने के लिए मना कर दिया।
तब बजरंग दल मुम्बई के प्रमुख श्री उमेश राणे अपने 100 समर्थको और 50 शिवसैनिक (सभी महाराष्ट्रीयन) स्कूल में गए और फादर की भद बिगाड़ी। और पुलिस में शिकायत दर्ज कराई। मजे की बात है एक उत्तर भारतीय पर जुल्म हुआ तो उसके हक़ में लड़नेवाले सभी महाराष्ट्रीयन थे।
दूसरी तरह उत्तर भारतीयों के सारे मसीहा- संजय निरुपम, कृपाशंकर, नसीम खान, अबू आजमी आदि बिल में जा घुसे थे।
यह खबर अंगरेजी अखबार मुम्बई मिरर और डीएनए में भी छपी थी। मिम्बी मिरर का लिंक यहाँ दे रहा हूँ, जिसे अपनी पुष्टि के लिए आप पढ़ सकते हैं। टीवी चैनलों पे भी उमेश राने आये थे।
ऐसे असंख्य वाकये हैं। फिर भी हम उत्तर भारतीय मराठी मानूष के साथ प्रेम से नहीं रह पाए तो गलती हमारी है। किसी राज या बालासाहेब ठाकरे की नहीं।
दरअसल हमें ये सत्य स्वीकार करना होगा कि मुम्बई के अधिकाँश अपराधो में उत्तर भारतीय मुस्लिम (खासकर वहाबी) शामिल होते हैं। लेकिन ठीकरा फूटता है सभी उत्तर भारतीयों पर। ऐसे में लालू, नीतीश, अबू, अमर सिंह, रौल विंची और मुलायम, कृपाशंकर, निरुपम के बयान आग में घी डालने का काम करते हैं।
और मुम्बई में यूपी के यादव के सामने मराठी जाधव, और पांडे के सामने देशपांडे खडा हो जाता है। जब की पता करो तो दोनों के रगों में एक ही डीएनए होगा!!
सोनिया के खिलाफ राष्ट्रवाद का नारा लगाकर राष्ट्रवादी कोंग्रेस पार्टी बनाने वाले शरद पवार का 'राष्ट्रवाद' से कितना वास्ता है?
ठीक वैसे ही वक्त के साथ मराठावाद का नारा भी हवा के साथ गुम होने वाला है। हाँ हमें मुम्बई में अपनी विश्वसनीयता कायम करनी होगी।
दूसरी तरफ हमें समझना होगा कि ---हमारे वोटो पे जितने वाले गोवा में कोंग्रेस का मुख्यमंत्री दिगंबर कामत उत्तर भारतीयों को भिखारी कहता है। महाराष्ट्र का शिक्षा मंत्री सुरेश शेट्टी हमें सिर्फ ठेला वाला, केला वाला कहता है तो कोई तकलीफ नहीं होती तो ठाकरे से क्यों इतनी खुन्नस?? क्यों हम निरुपम, अबू आजमी कृपाशंकर, लालू अमर सिंह और सेकुलर मीडिया जैसे दलालों के बहकावे में आकर मुम्बई में अपनी विश्वसनीयता गिराने पे तुले हैं।
मुम्बई दंगो में सरे आम नंगा नाच करनेवाले और दाउद इब्राहिम के करीबी अबू आजमी आये दिन मुम्बई में पोस्टर चिपकाता है कि -''मुम्बई हमारी आपकी नहीं किसी के बाप की!'' तो किस सद्भाव की अपेक्षा रखे? किसी जमाने में मुम्बई की गलियों में झोला लेकर काम मांगते फिरते उत्तर भारतीय संजय निरुपम को बाला साहब ने सामना का सम्पादक बनाकर राज्य सभा में भेजा. लेकिन बदले में निरुपम ने बाला साहेब को धोखा दिया। इस तरह हम कैसी विश्वसनीयता कायम करना चाहते हैं??
याद रखिये बाला साहब न होते तो मुम्बई की हालत भी कश्मीर, केरल, असम और मुल्लायम राज जैसी होती।
http://www.mumbaimirror.com/